Monday 21 September 2020

ओलीजी

 पूर्वजन्म और कर्मफल विचारधारा के साथ  जैन धर्म का उद्भव हुआ। जैन धर्म में आत्म कल्याण के लिए प्राणी स्वयं ज़िम्मेदार है  कि पूरे परिवार के लिए सिर्फ़ स्त्री आत्म कल्याण के इस पर्व में स्त्रीपुरुषों द्वारा  दिनों तक यह तप किया जाता है निर्मल चित्त से प्रभु का ध्यान किया जाता है धर्मगुरुओं ने श्रीपाल मयनासुंदरी की चरित गाथा को आधार बना कर इस तप द्वारा कर्म का क्षय करते हुए मनुज को सद्गगति से परम गति की ओर  प्रेरित किया गया है


सभी ऋतुओं में तन -मन को स्वस्थ रखने के लिए आहार विज्ञान को धार्मिकता का बाना पहना करव्रत को जीवनशैली से जोड़ा गया।

मेरी समझ कहती है कि ऋतु चक्र में संधिकाल के समय किए जाने वाले इस व्रत का उद्देश्य शरीर कोबीमारियों से बचाया जाना रहा होगा अमल करवाने के लिए कथा कहानियों सहारा लिया गया होगा...

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ओलीजी की महत्ता मुक्तक के रूप में प्रस्तुत है


चेत्र  कुआर माह में यह शास्वत तप करो 

दूध घृत खाँड़ त्याग विगही रसना रस हरो 

अलुना एकाहार संग जाप क्रिया ध्यान कर

कर्म खपावे मोक्ष अपावे जो यह तप वरो 


अवंती में तप की महिमा कहती ओलीजी 

श्रीपाल मयणा का उद्धार करती ओलीजी 

७०० कोढ़ी का रोग हरा देखा चाहो तो लक्षमणी में भित्तित्रित कथा कहती ओलीजी 


जैन धर्म का पर्व तप आराधना ओलीजी 

तप का मूलमंत्र रस विराधना  ओलीजी 

नवपद वरण बीस स्थानक वर्धमान 

सिद्धचक्र सुमिरन पुण्य संवर्धना ओलीजी 


विज्ञान  भी माने यह अनूठी व्रत नीति ओलीजी 

हरनी हो रोग व्याधि तो हरो स्वाद रीति ओलीजी 

जैन दर्शन नवतत्व गुण आत्मसात करो 

जीवन पुण्यनिधि अर्जित हो करो जो सविधि ओलीजी 


शब्दनिधि 

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Thursday 9 January 2020

हिंदी विश्व दिवस


गर्व करें आप हिंदी बोलते है 

१० जनवरी विश्व हिंदी दिवस (१९७५ में भारत से बाहर प्रचार प्रसार इसी दिन शुरू हुआ था )

भारत से बाहर शिकागो, अमेरिका ,कैलीफ़ोर्निया ,बर्कले ,मिन्नेसोटा ,बोस्टन यूनिवर्सिटी में आप हिंदी में कोर्स कर सकते है  

हिंदी भविष्य कीलिंग्वा फ़्रेंका’(जैसा बोला जाता है वैसा लिखा जाता है ) भाषा बनेगी

मंदारिन और इंग्लिश के बाद हिंदी तीसरे स्थान पर है जिसे विश्व में सबसे ज़्यादा बोला जाता है
दुनिया में ५४. करोड़ लोग हिंदी बोलते ,लिखते,समझते  है

ऐसी भाषा जिसमें दिल्ली IIT द्वारा तीस लाख शब्दों का डाटा तैयार किया जा रहा है


Saturday 6 October 2018



भारतीय ग्रामीण संस्कृति 
में किसी गाँव के किसी रसोई की 
है तस्वीर बिलकुल आम सी
एक लेखक की नज़र से 
बोल पड़ेगी इसमें रखी हर आकृति 
हर वस्तु लगने लगेगी ख़ास सी 
एक नज़र देखने पर लगे 
ऐसा है क्या तस्वीर में 
पिली मिट्टी से लीपी पुती हुई 
कच्ची दीवारों से बना घर 
उसमें एक कोने में रसोई 
ले दे के गिनती के बरतन 
दो भगोने ,एक हंडा ,एक लोटा 
दो धामे आटे से भरी परात 
एक चमचा ,ग्लास ,एक चूल्हा 
चूल्हे में पड़ी दो जलती लकड़ियाँ 
और उठता धुआँ करे हाल बेदम 
बनती रोटी के लिए चिमटा तक नहीं 
बेलने के लिए ना चकला बेलन 
थेली में पड़ी दाल 
पुराने से डब्बे में तेल 
हो गया इनका आज का राशन 
एल्यूमिनियम का कनस्तर 
जिसका ना कोई ढक्कन 
टूटी फूटी चीज़ों से 
जैसे तैसे तो खाना है पक रहा 
स्त्री जो पका रही है खाना 
उसकी दशा का क्या कहना 
खिचड़ी बाल अजब सा हाल 
बिंदी लाल चूड़ी लाल 
सिर पर घूँघट डाल 
बैठे बैठे आटा रही है सान 
समझ नहीं आता 
फिर भी ये खाना खा कर 
खाने वाले को मिलेगी असीम तृप्ति 
खिला कर भोजन तृप्त होगी ये स्त्री 
कुछ बात है जो इसे बनाती ख़ास 
नहीं पता !!!!! तो बताते है राज 
ऐसे ही नहीं गुणगान हो रहा 
फ़ाइव स्टार जैसा घर सही 
कच्ची मिट्टी का ये घर मोह रहा 
सीमित साधनों से जीवन जीते है 
कल की चिंता में जी को नहीं जलाते है 
जो मिले उसमें संतोष करते है 
कड़ी मेहनत से नहीं घबराते है 
आने वाले को भी जैसा हो खिलाते है 
रुखा सूखा जो मिले पेट भरते है 
तभी तो घर में दो चार निवाले भी 
छप्पन भोग से बड़कर लगते है