पूर्वजन्म और कर्मफल विचारधारा के साथ जैन धर्म का उद्भव हुआ। जैन धर्म में आत्म कल्याण के लिए प्राणी स्वयं ज़िम्मेदार है न कि पूरे परिवार के लिए सिर्फ़ स्त्री ।आत्म कल्याण के इस पर्व में स्त्रीपुरुषों द्वारा ९ दिनों तक यह तप किया जाता है ।निर्मल चित्त से प्रभु का ध्यान किया जाता है ।धर्मगुरुओं ने श्रीपाल मयनासुंदरी की चरित गाथा को आधार बना कर इस तप द्वारा कर्म का क्षय करते हुए मनुज को सद्गगति से परम गति की ओर प्रेरित किया गया है
सभी ऋतुओं में तन -मन को स्वस्थ रखने के लिए आहार विज्ञान को धार्मिकता का बाना पहना करव्रत को जीवनशैली से जोड़ा गया।
मेरी समझ कहती है कि ऋतु चक्र में संधिकाल के समय किए जाने वाले इस व्रत का उद्देश्य शरीर कोबीमारियों से बचाया जाना रहा होगा ।अमल करवाने के लिए कथा कहानियों सहारा लिया गया होगा...
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ओलीजी की महत्ता मुक्तक के रूप में प्रस्तुत है
चेत्र ओ कुआर माह में यह शास्वत तप करो
दूध घृत खाँड़ त्याग विगही रसना रस हरो
अलुना एकाहार संग जाप क्रिया ध्यान कर
कर्म खपावे मोक्ष अपावे जो यह तप वरो
अवंती में तप की महिमा कहती ओलीजी
श्रीपाल मयणा का उद्धार करती ओलीजी
७०० कोढ़ी का रोग हरा देखा चाहो तो लक्षमणी में भित्तित्रित कथा कहती ओलीजी
जैन धर्म का पर्व तप आराधना ओलीजी
तप का मूलमंत्र रस विराधना ओलीजी
नवपद वरण बीस स्थानक वर्धमान
सिद्धचक्र सुमिरन पुण्य संवर्धना ओलीजी ।
विज्ञान भी माने यह अनूठी व्रत नीति ओलीजी
हरनी हो रोग व्याधि तो हरो स्वाद रीति ओलीजी
जैन दर्शन नवतत्व गुण आत्मसात करो
जीवन पुण्यनिधि अर्जित हो करो जो सविधि ओलीजी
शब्दनिधि
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